*शिखर जी यात्रा की पुस्तक के विमोचन के पहले आचार्य श्री ने सम्मेद शिखर जी पर दिए प्रवचन और कहा मोक्ष मार्ग कठिन नहीं होता*
*जेल अधीक्षक और जेलर ने आचार्य श्री से कहा जेल में हो गुरुवर आपके प्रवचन, हमारा और बंदियो का भाग्य खुल जाएगा*
इंदौर। इंदौर के उदय नगर दिगम्बर जैन मंदिर में प्रवचन में आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज ने कहा आप लोगो ने अनुभव किया होगा की जब व्यक्ति कोई सीढ़ी वगैहर चढ़ता तो उसका झुकाव किस ओर होना चाहिए और होता किस ओर है?
झुकाव का अर्थ है,आप तो चढ़ रहे है, सीधे चढ़ेंगे तो तो ध्यान लगाइए की क्या पोज़ बनता है वहां पर, यदि सीधे चढ़ेंगे तो आप नहीं चढ़ पाएंगे, उस समय आपका झुकाव सामने की ओर हो जाता है और आप आराम से एक-एक सीढ़ी चढ़ सकेंगे।
...ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है, जब हम चढ़ रहे होते है, तो वह पढ़ाव या चढ़ाव का भार अपनी छाती पर पढता है और छाती पर पढ़ने से हम उसको चलने में सहन नहीं कर पाते, इसलिए ऊपर चढ़ते समय हमेशा 30 कोष का कोण बनाकर चढ़े तो अवश्य आसानी से चढ़ जाएंगे। हमें तो अनुभव हुआ है, जब भी बड़े बाबा या सम्मेद शिखरजी चढ़े थे, तो प्रायः करके सबको ऐसा ही हुआ था। आप मोक्ष मार्ग पर चलने जा रहे हो या प्रयास भी कर रहे हो तो इस समय आपको मोह को अथवा अभिमान को.....त्यागना होगा। समझ में आई बात, पूरी बात? मोक्ष मार्ग ज्यादा कठिन नहीं होता है, सीधे 2 काम होता है।
अपना है ही नहीं मालूम पढ़ गया है तो सीधे टेढ़े में क्या अंतर है महाराज?
महाराज बहुत भारी लगता, यह भारीपन कहाँ से आया, दूसरे से नहीं आया, स्वयं में से ही आया है। ये मान्यता तोड़नी बहुत ही कसरत की आवश्यकता है, लेकिन वो बौद्धिक कसरत है, शरीर की कसरत नहीं है। आसानी से आप चढ़ना चाहते हो, मोक्ष के मंजिल तक पहुँचना चाहते हो तो आप मान निकाल दीजिए, नम्र हो जाइये, मैं जो कुछ भी हूँ, वहाँ जाने के बाद हूँ, अभी में कुछ हूँ हीं नहीं। मैं आश्रित हूँ, बंध गया हूँ, जब तक मुक्त नहीं होऊंगा जब तक वहाँ पहुँचूँगा नहीं तब तक नम्र रहूँगा, झुकाव और लक्ष्य की ओर रहूँगा।
दूसरी बात चढ़ते समय इधर उधर आप देख नहीं सकते बल्कि चलते समय ऊपर की ओर देखना आसानी से अच्छा लगता है, उस समय दिखता कुछ नहीं है लेकिन ऊपर जा रहा हूँ ये अनुभव होता है अथवा आसमान दिखता है। आसमान को देखने से अपने को सोहलियत हो जाती है और नीचे देखेंगे धरती दिखती है, चक्कर आने की सम्भावना रहती है, इसलिए आप होशोआवाज के साथ अपने आप को संभालकर के चढ़िए। आपकी यात्रा मंगलमय हो। आज दयोदय चेरिटेबल फ़ाउंडेशन ट्रस्ट की और से सचिन जैन, मनोज बाकलीवाल, संजय मेक्स, अशोक डोशी, कमल अग्रवाल ने श्रीफ़ल भेंट किया। संचालन सचिन जैन ने किया और आभार नरेंद्र जैन पपाजी ने माना।
*आचार्य श्री से बोले जेल अधीक्षक*
*इंदौर में ऐसे बंदी है जो एक दिन में एक साड़ी तक बना लेते है*
इंदौर। दिगम्बर जैन समाज के सबसे बड़े संत आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज के दर्शन करने गुरुवार को जेल अधीक्षक राकेश भांग़र और जेलर एल.के.एस. भदोरिया पहुँचे।
दोपहर २ बजे पुलिस विभाग के दोनो प्रमुख अधिकारी इंदौर के उदय नगर स्थित लवकुश विद्यालय में विराजित आचार्य श्री के दर्शन को आए थे। यहा पर आचार्य श्री से चर्चा भी की थी। युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राहुल सेठी ने बताया की इस दोरान आचार्य श्री से चर्चा में जेल अधीक्षक श्री भांग़र ने कहा की इंदौर जेल में भी हथकरघा लगाने की योजना पर हम योजना बना रहे है। सागर जेल में हमने इंदौर से ५ बंदियो को हथकरघा के प्रशिक्षण के लिए भेजा था। वहाँ पर उन्होंने काफ़ी अच्छे तरह से प्रशिक्षण लिया है। अब वे यहा पर एक दिन में एक साड़ी का निर्माण कर रहे है। इसके पहले दोनो ही अधिकारी ने आचार्य श्री के समक्ष श्रीफल भेंट कर आग्रह किया की वे एक दिन जेल में आकर बंदियो के लिए विशेष प्रवचन देवे।
*९ हथकरघा से ५४ का सफ़र बना*
नेमावर में जब आचार्य श्री विराजित थे, तब जेल अधीक्षक द्वारा उनसे मुलाक़ात की गयी थी। उस समय अधीक्षक की और से ९ हथकरघा लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। उस समय आचार्य श्री ने कहा था ९ नहीं १८ लगाओ। अब १८ भी नहीं पूरे ५४ हथकरघा लगाने की योजना बनाई गयी है।
*समाज की और से भेजा जाएगा प्रस्ताव*
जेल में हथकरघा लगाने के लिए अब समाज द्वारा जेलर और जेल अधिक्षक को प्रस्ताव भेजा जाएगा। उस प्रस्ताव को स्वीकरती देने के लिए भोपाल डिजी ऑफ़िस प्रस्ताव भेजेंगे। वहा से अनुमति मिलते ही फिर जैन समाज द्वारा जेल में हथकरघा लगाने का काम किया जाएगा। फ़िलहाल देश के अनेक शहरो की जेल में यह पुण्य कार्य चल रहा है। इससे बंदी का जीवन तो सुधर ही रहा और साथ ही उनके परिवार को भी भरण पोषण के लिए राशि मिल रही है।