प्रदेश के जिला व सिविल अस्पतालों में पैथोलॉजिकल और माइक्रोबायोलॉजिकल जांचों की संख्या बढ़ेगी।

प्रदेश के जिला व सिविल अस्पतालों में पैथोलॉजिकल और माइक्रोबायोलॉजिकल जांचों की संख्या बढ़ेगी। इसके लिए यहां पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) से सेंट्रल पैथोलॉजी लैब बनाने की तैयारी है। जिला अस्पतालों में अभी 48 तरह की जांचें हो रही हैं। ये सभी जांचें नि:शुल्क हैं। पीपीपी मॉडल आने के बाद 78 तरह की जांचें होने लगेंगी।


इसके बाद जांचों की संख्या बढ़ाकर 112 तक की जा सकेगी। लैब चलाने के लिए कंपनी चुनने की प्रक्रिया मप्र पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन द्वारा चलाई जा रही है। इसके लिए टेंडर खुल गया है। विशेषज्ञों की एक टीम टेंडर शर्तों का परीक्षण करने के बाद कंपनी का चयन करेगी। इसमें एक से दो महीने लग सकते हैं।


सभी जांचें ऑटौमैटिक होंगी


स्वास्थ्य विभाग एक अधिकारी ने बताया कि लैब में निवेश करने वाली कंपनी खुद अपनी मशीनें लगाएगी। यह मशीनें यूएस एफडीए (फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) से मान्यता प्राप्त होंगी। जांच के लिए उपयोग होने वाले रीएजेंट्स (केमिकल्स) नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड पर लैबोरेट्रीज (एनएबीएल) मान्यता प्राप्त होंगे। सभी जांचें ऑटौमैटिक होंगी। सैंपल लेने के बाद पूरा काम मशीनों से होगा


ऐसे में जांच में किसी तरह गलती की आशंका नहीं रहेगी। जांचों की गुणवत्ता बेहतर रखने के लिए हर छह महीने में मशीनों को मापांकन (कैलिब्रेशन) कराया जाएगा। दूसरा, एम्स दिल्ली व अन्य संस्थानों सैंपल लाकर जांच कराई जाएगी। तीसरा, लैब में जांचे गए कुछ सैंपलों की दूसरी लैब में जांच कराई जाएगी।


नि:शुल्क रहेंगी सभी जांचें, ऑनलाइन मिलेगी रिपोर्ट


पीपीपी से जांचें शुरू होने के बाद भी सभी जांचें अभी की तरह मुफ्त रहेंगी। अधिकारियों के मुताबिक सरकार पर भी कोई अतिरिक्त खर्च नहीं आएगा, बल्कि खर्च कम हो जाएगा। खर्च कम होने की वजह यह कि सरकार को न मशीनें खरीदना पड़ेंगी न रीएजेंट्स, मशीनों की मरम्मत भी कंपनी खुद कराएगी। मौजूदा लैब टेक्नीशियन व अन्य कर्मचारियों को पीपीपी से बनने वाली लैब में पदस्थ किया जाएगा। मरीजों को कप्यूटराइज रिपोर्ट दी जाएगी। ऑनलाइन व एसएमएस के जरिए रिपोर्ट देने की सुविधा भी रहेगी


इसलिए कई बार गलत आती है रिपोर्ट


वर्तमान में जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल व सीएचसी में जांच की मशीनें और उसकी किट अलग-अलग कंपनियों की हैं। इस कारण जांच की गुणवत्ता बिगड़ती है। दूसरी दिक्कत यह कि उपकरणों का कैलिब्रेशन नियमानुसार हर छह महीने में नहीं किया जा रहा है। ऐसी शिकायतें आने के बाद गुणवत्ता पता करने अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का गुणवत्ता प्रकोष्ठ दोबारा जांच करा रहा है। अस्पतालों के जांचे हुए सैंपल दोबारा जांच के लिए एम्स दिल्ली, सीएमसी बेल्लोर भेजे जा रहे हैं। इसी तरह से वहां के सैंपल यहां लाकर जांचे जा रहे हैंं। इन जाचों में भी माप (वैल्यू) में फर्क मिला है


यह जरूरी जांचें भी हो सकेंगी


-एचबीए1सी- डायबिटीज की जांच


-थायराइड- टी3, टी4 व टीएसएच हार्मोन की जांच


-विटामिन डी व विटामिन बी12 - विटामिन की कमी पता करने के लिए


-टार्च टेस्ट- बार-बार गर्भपात होन पर की जाने वाली जांच


-सीपीके एमबी- हार्ट की जांच


-एलडीएच- मांसपेशियों की बीमारी से जुड़ा टेस्ट


- हीमोफीलिया व थैलासीमिया की जांच


अभी कहां कितनी जांचे होती हैं


जिला अस्पताल- 48


सिविल अस्पताल- 32


सीएचसी - 28


पीएचसी - 16


इनका कहना है


टेंडर खुल गया है। अब कॉर्पोरेशन की बोर्ड मीटिंग से इसका अप्रूवल होना है। अगली मीटिंग में इसे रखा जाएगा। 


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