झाबुआ साबिर मंसूरी प्रसिद्ध क्रांतिकारी समाज वादी नेता स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धालु पहुंचे उनके समाधि स्थल पर जब मानव को यदि कोई भक्त देवता मान ले तो वह मानव देवता भगवान का रूप ले लेता है ऐसा ही नजारा झाबुआ जिले के बामनिया ग्राम में 21 वर्षों से यह नजारा देखने में आ रहा है वैसे तो मामा बालेश्वर दयाल यूपी के रहने वाले थे परंतु उन्होंने झाबुआ जिले के ग्राम बामनिया को अपने कर्म स्थली माना और यहां पर आकर ही गरीब आदिवासी निचले तबकों की सेवा में लगे रहे भास्कर राजस्थान के लोग यहां मामा जी को समाधि स्थल पर 25 दिसंबर से लेकर 26 दिसंबर तक यहां आते हैं क्योंकि 26 दिसंबर को मामा जी का देहावसान हुआ था और 26 दिसंबर को ही इनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है श्रद्धा में मग्न रहते हैं कि मामा जी के नाम के गीत गाए जाते हैं मामा जी के नाम का श्रद्धालु भगत गीत गाकर मामा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं खास बात यह है कि स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल एक क्रांतिकारी नेता होने के साथ-साथ एक समाज सेवक थे सन 1996 में उन्हों को इंदिरा गांधी पुरस्कार से मध्य प्रदेश गवर्नमेंट ने उनको नवाजा था निया पुरस्कार तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के हाथों मामा बालेश्वर दयाल को दिया गया खास बात यह है कि इस भीड़ को कोई लाता नहीं है श्रद्धालु श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने के पश्चात मामा जी के समाधि स्थल पर आकर अपनी मन्नत उतारते हैं वह माथा टेकते हैं
झाबुआ साबिर मंसूरी प्रसिद्ध क्रांतिकारी समाज वादी नेता स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धालु पहुंचे उनके