आज पेट्रोल पम्पो का नहीं व्यवस्था का पेट्रोल खत्म हुआ..

आज पेट्रोल पम्पो का नहीं व्यवस्था का पेट्रोल खत्म हुआ..


 शाम होते-होते खबर आने लगी थी कि पेट्रोल पंप पर पेट्रोल  कम होता जा रहा है, और कुछ पेट्रोल पंप पर पेट्रोल खत्म हो चुका है। अति आवश्यक वस्तुओं में शामिल पेट्रोल का इस तरह से एकदम से खत्म होना शहर की व्यवस्था के नकारा होने का सीधा सबूत था। पेट्रोल पंप पर यह पेट्रोल अचानक खत्म नहीं हुआ इसे खत्म होने में पूरे 2 दिन का समय लगा। ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की हड़ताल में टैंकर संचालकों के शामिल होने की घोषणा 4 दिन पहले ही हो चुकी थी और इसके साथ ही घोषणा हो चुकी थी कि इसका सीधा असर पड़ेगा, शहर की दैनिक दिनचर्या पर। क्योंकि टैंकर्स के माध्यम से ही पेट्रोल और डीजल पेट्रोल पंप तक पहुंचता है। टैंकर्स के बंद होने का मतलब था कि पेट्रोल और डीजल की आपूर्ति रुकेगी इससे शहर का जीवन अस्त व्यस्त होगा।  यह भी तय हो गया था लेकिन आम जनता से साहब कहलाने वाले नौकरशाहों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। और रविवार शाम होते होते अफसरों का नकारापन और दूरनदेशी की कमी भी सबके सामने आ गई। क्या शहर के इन कथित कर्ताधर्ता ओं को इतना भी होश नहीं था कि पेट्रोल और डीजल का स्टॉक लगातार काम हो रहा है। जबकि इनके पास रोजाना पेट्रोल पंपों की स्थिति की जानकारी पहुंचती है। या तो अफसरों ने जानबूझकर उसे अनदेखा करा या जनता को मरने के लिए ही छोड़ दिया। शायद नेताओं की गुलामी में खुद को आगे रखने की होड़ ही थी जो नेताओं को नेता बनाने वाली जनता को भी इन अफसरों ने नजरअंदाज कर दिया। पेट्रोल पंप के टैंकों में खत्म होता पेट्रोल व्यवस्थाओं में लग चुकी सड़ांध को भी सबके सामने लाकर रख दिया।  जब  जनता सड़कों पर  अपनी गाड़ियां धकेलने के लिए मजबूर हो गई  तब साहब ने चिट्ठी जारी कर दी  और कह दिया कि  समस्या खत्म। क्या साहब की एक चिट्ठी से खाली पड़े पेट्रोल पंप के टैंक भर जाएंगे, यदि ऐसा होता है तो  साहब आप  रोज चिट्ठियां लिख दिया करें,  और एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में ताकि  गरीबों की  गाड़ियों में भी अपने आप टैंक पूरे भर जाएं। पूरे शहर की जनता सिर्फ एक सवाल का जवाब चाहती है  की  जब पहले से पता था कि  पेट्रोल और डीजल कम हो रहा है तो  उसकी आपूर्ति  बनाए रखने के लिए  प्रयास क्यों नहीं किए गए?  तब क्यों नहीं देखा गया  जब  पेट्रोल पंप के टैंक  खाली हो रहे थे। क्या इसकी जिम्मेदारी इनकी नही थी। यदि नही थी तो फिर इन लोगो को यहां बैठाया ही क्यो गया है?